लड़ा कर आँख उस से हम ने दुश्मन कर लिया अपना
निगह को नाज़ को अंदाज़ को अबरू को मिज़्गाँ को
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बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
हवा में फिरते हो क्या हिर्स और हवा के लिए
न दूँगा दिल उसे मैं ये हमेशा कहता था
मेरे सुर्ख़ लहू से चमकी कितने हाथों में मेहंदी
जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ
सहम कर ऐ 'ज़फ़र' उस शोख़ कमाँ-दार से कह
हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते
तमन्ना है ये दिल में जब तलक है दम में दम अपने
काफ़िर तुझे अल्लाह ने सूरत तो परी दी
इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
हमदमो दिल के लगाने में कहो लगता है क्या