सहम कर ऐ 'ज़फ़र' उस शोख़ कमाँ-दार से कह
खींच कर देख मिरे सीने से तू तीर न तोड़
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1053) Peoples Rate This
टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच
या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता
ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तिरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई
न उस का भेद यारी से न अय्यारी से हाथ आया
मर्ग ही सेहत है उस की मर्ग ही उस का इलाज
लड़ा कर आँख उस से हम ने दुश्मन कर लिया अपना
शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही
सब मिटा दें दिल से हैं जितनी कि उस में ख़्वाहिशें
बुत-परस्ती जिस से होवे हक़-परस्ती ऐ 'ज़फ़र'
दौलत-ए-दुनिया नहीं जाने की हरगिज़ तेरे साथ
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
याँ तक अदू का पास है उन को कि बज़्म में