हमदमो दिल के लगाने में कहो लगता है क्या
पर छुड़ाना इस का मुश्किल है लगाना सहल है
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तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
ये चमन यूँही रहेगा और हज़ारों बुलबुलें
'ज़फ़र' बदल के रदीफ़ और तू ग़ज़ल वो सुना
चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना
ख़्वाब मेरा है ऐन बेदारी
बे-ख़ुदी में ले लिया बोसा ख़ता कीजे मुआफ़
इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल
पान की सुर्ख़ी नहीं लब पर बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार के
क्यूँकि हम दुनिया में आए कुछ सबब खुलता नहीं
मेरे सुर्ख़ लहू से चमकी कितने हाथों में मेहंदी
जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ