तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
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मैं सिसकता रह गया और मर गए फ़रहाद ओ क़ैस
याँ तक अदू का पास है उन को कि बज़्म में
जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ
बुत-परस्ती जिस से होवे हक़-परस्ती ऐ 'ज़फ़र'
पान खा कर सुर्मा की तहरीर फिर खींची तो क्या
न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना
होते होते चश्म से आज अश्क-बारी रह गई
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम
करेंगे क़स्द हम जिस दम तुम्हारे घर में आवेंगे
जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो
शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़