तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा
शम्अ होगी जहाँ परवाना वहाँ पहुँचेगा
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क्या पूछता है हम से तू ऐ शोख़ सितमगर
भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
न मुझ को कहने की ताक़त कहूँ तो क्या अहवाल
इश्क़ तो मुश्किल है ऐ दिल कौन कहता सहल है
सहम कर ऐ 'ज़फ़र' उस शोख़ कमाँ-दार से कह
चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना
हाल-ए-दिल क्यूँ कर करें अपना बयाँ अच्छी तरह
जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ
टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच
बनाया ऐ 'ज़फ़र' ख़ालिक़ ने कब इंसान से बेहतर