लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में
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शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही
तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा
जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हाथ क्यूँ बाँधे मिरे छल्ला अगर चोरी हुआ
है दिल को जो याद आई फ़लक-ए-पीर किसी की
हिज्र के हाथ से अब ख़ाक पड़े जीने में
वाँ इरादा आज उस क़ातिल के दिल में और है
गई यक-ब-यक जो हवा पलट नहीं दिल को मेरे क़रार है
काफ़िर तुझे अल्लाह ने सूरत तो परी दी
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
क्यूँकि हम दुनिया में आए कुछ सबब खुलता नहीं