'ज़फ़र' बदल के रदीफ़ और तू ग़ज़ल वो सुना
कि जिस का तुझ से हर इक शेर इंतिख़ाब हुआ
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Wasi Shah
Parveen Shakir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1796) Peoples Rate This
न दाइम ग़म है ने इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है
ये चमन यूँही रहेगा और हज़ारों बुलबुलें
क्यूँकि हम दुनिया में आए कुछ सबब खुलता नहीं
शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़
इधर ख़याल मिरे दिल में ज़ुल्फ़ का गुज़रा
न दरवेशों का ख़िर्क़ा चाहिए न ताज-ए-शाहाना
सब रंग में उस गुल की मिरे शान है मौजूद
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का
नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा
दौलत-ए-दुनिया नहीं जाने की हरगिज़ तेरे साथ
पान की सुर्ख़ी नहीं लब पर बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार के