इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल
दुनिया है चल-चलाव का रस्ता सँभल के चल
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चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा
बे-ख़ुदी में ले लिया बोसा ख़ता कीजे मुआफ़
लोगों का एहसान है मुझ पर और तिरा मैं शुक्र-गुज़ार
हमदमो दिल के लगाने में कहो लगता है क्या
ऐ वाए इंक़लाब ज़माने के जौर से
देख दिल को मिरे ओ काफ़िर-ए-बे-पीर न तोड़
निबाह बात का उस हीला-गर से कुछ न हुआ
मेहनत से है अज़्मत कि ज़माने में नगीं को
काफ़िर तुझे अल्लाह ने सूरत तो परी दी