भाग्य Poetry (page 5)
ये भी सच है कि नहीं है कोई रिश्ता तुझ से
शहज़ाद अहमद
शहर का शहर अगर आए भी समझाने को
शहज़ाद अहमद
ख़ल्क़ ने छीन ली मुझ से मिरी तन्हाई तक
शहज़ाद अहमद
जान मुक़द्दर में थी जान से प्यारा न था
शहज़ाद अहमद
फ़ैसले की घड़ी
शहरयार
ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता
शहरयार
ग़म मुझ से किसी तौर समेटा नहीं जाता
शहनाज़ मुज़म्मिल
रूह को क़ैद किए जिस्म के हालों में रहे
शाहिद कबीर
सुना है तेरी ज़माने पे हुक्मरानी है
शाहिद ग़ाज़ी
जब अपना मुक़द्दर ठहरे हैं ज़ख़्मों के गुलिस्ताँ और सही
शाहिद अख़्तर
ये हम कौन हैं
शाहीन मुफ़्ती
मचलते रहते हैं बिस्तर पे ख़्वाब मेरे लिए
शहबाज़ नदीम ज़ियाई
दयार-ए-शाम न बुर्ज-ए-सहर में रौशन हूँ
शहबाज़ नदीम ज़ियाई
कब गवारा है मुझे और कहीं पर चमके
शहबाज़ ख़्वाजा
सरों पे साया ग़ुबार-ए-सफ़र के जैसा है
शफ़क़ सुपुरी
मज़ा शबाब का जब है कि बा-ख़ुदा भी रहे
शायर फतहपुरी
ऐ बद-गुमाँ तिरा है गुमाँ और की तरफ़
शाद लखनवी
मजबूर हैं पर इतने तो मजबूर भी नहीं
शबनम शकील
सुना के रंज-ओ-अलम मुझ को उलझनों में न डाल
शब्बीर नाज़िश
बरतर समाज से कोई फ़नकार भी नहीं
शबाब ललित
नींद से आँख वो मिल कर जागे
शायर लखनवी
ख़्वाब से आँख वो मल कर जागे
शायर लखनवी
मिरे हक़ में कोई ऐसी दुआ कर
सीमान नवेद
किताब-ए-उम्र में इक वो भी बाब होता है
सीमाब सुल्तानपुरी
दिल पे जब तेरा तसव्वुर छा गया
सीमाब सुल्तानपुरी
निकहत जो तिरी ज़ुल्फ़-ए-मोअ'म्बर से उड़ी है
सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर
बिस्तर-ए-हिज्र की शिकनों पे कहानी लिख दे
सय्यद ज़िया अल्वी
कुछ और अकेले हुए हम घर से निकल कर
सऊद उस्मानी
कैसी है ये बहार मुक़द्दर की बात है
सत्यपाल जाँबाज़
हमारे लिए सुब्ह के होंट पर बद-दुआ' है
सरमद सहबाई
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