भाग्य Poetry (page 7)

अँधेरी रात के साँचे में ढाले जा चुके थे हम

सचिन शालिनी

वो और होंगे नुफ़ूस बे-दिल जो कहकशाएँ शुमारते हैं

साबिर

तू नहीं है तो मिरी शाम अकेली चुप है

सबीहा सबा, पाकिस्तान

और किस तरह उसे कोई क़बा दी जाए

सबा जायसी

कारवाँ लुट गया राहबर छुट गया रात तारीक है ग़म का यारा नहीं

सबा अफ़ग़ानी

एक रोते हुए आदमी को देख कर

रियाज़ लतीफ़

एक न्यूक्लेयर नज़्म

रियाज़ लतीफ़

रंग पर कल था अभी लाला-ए-गुलशन कैसा

रियाज़ ख़ैराबादी

गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के

रियाज़ ख़ैराबादी

आरज़ू भी तो कर नहीं आती

रियाज़ ख़ैराबादी

क्यूँ अंधेरों का मुसाफ़िर है मुक़द्दर अपना

रिफ़अतुल क़ासमी

छुपे हुए थे जो नक़्द-ए-शुऊ'र के डर से

रियाज़ मजीद

विदा-ए-यार का लम्हा ठहर गया मुझ में

रहमान फ़ारिस

ख़ाक उड़ती है रात-भर मुझ में

रहमान फ़ारिस

यूँ खुले बंदों मोहब्बत का न चर्चा करना

रज़्ज़ाक़ अफ़सर

हर दिन जिस पर फूल खिलें वो बे-मौसम की डाल नहीं मैं

रज़्ज़ाक़ अफ़सर

आज क़ातिल का गले पर मिरे ख़ंजर चमका

रौनक़ टोंकवी

इस ख़ार-मिज़ाजी में फूलों की तरह खिलना

रउफ़ ख़लिश

किन सराबों का मुक़द्दर हुईं आँखें मेरी

राशिद तराज़

टूट जाए तो कहीं उस को भी चैन आता है

रशीदा सलीम सीमीं

हैं बे-नियाज़-ए-ख़ल्क़ तिरा दर है और हम

रशीद रामपुरी

सहरा सहरा बात चली है नगरी नगरी चर्चा है

रशीद क़ैसरानी

मिरी जबीं का मुक़द्दर कहीं रक़म भी तो हो

रशीद क़ैसरानी

हिम्मत-ए-आली का इतना तो ज़ियाँ होना ही था

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

मौसम-ए-गुल भी मिरे घर आया

रशीद कामिल

ख़्वाब उस के हैं जो चुरा ले जाए

रसा चुग़ताई

ख़्वाब उस के हैं जो चुरा ले जाए

रसा चुग़ताई

अपनी बे-चेहरगी में पत्थर था

रसा चुग़ताई

वो जिसे अब तक समझता था मैं पत्थर, सामने था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

न हरीफ़ाना मिरे सामने आ मैं क्या हूँ

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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