आज क़ातिल का गले पर मिरे ख़ंजर चमका
लिल्लाहिल-हम्द कि मेरा भी मुक़द्दर चमका
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उन से मिलना किसी बहाने से
क्या देखते हैं आप झिजक कर शराब में
जिस तरह अश्क चश्म-ए-तर से गिरे
न बातें कीं न तस्कीं दी न पहलू में ज़रा ठहरे
उड़ जाऊँगा बहार में मानिंद-ए-बू-ए-गुल
रब्त हो ग़ैर से अगर कुछ है
दिन को हाँ कह दिया तो रात नहीं
दिल तक हो चाक तेग़ जो सर पर लगाइए
नुस्ख़े में तबीबों ने लिखा और ही कुछ है
न बुतों के न अब ख़ुदा के रहे
हम उन को हाल-ए-दिल अपना सुनाए जाते हैं
हम हैं हुशियार क्या इरादा है