उड़ जाऊँगा बहार में मानिंद-ए-बू-ए-गुल
ज़ंजीर मेरे पा-ए-जुनूँ में हज़ार डाल
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आज क़ातिल का गले पर मिरे ख़ंजर चमका
दिल तक हो चाक तेग़ जो सर पर लगाइए
उन के जाने से ये दिल में हुई सूरत पैदा
दौड़े वो मेरे क़त्ल को तलवार खींच कर
नुस्ख़े में तबीबों ने लिखा और ही कुछ है
हम उन को हाल-ए-दिल अपना सुनाए जाते हैं
न बातें कीं न तस्कीं दी न पहलू में ज़रा ठहरे
दिन को हाँ कह दिया तो रात नहीं
है ज़ेर-ए-ज़मीं साया तो बाला-ए-ज़मीं धूप
हम हैं हुशियार क्या इरादा है
वस्ल उस से न हो विसाल तो हो