पीड़ित Poetry (page 4)

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

हबीब मूसवी

जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा

हबीब मूसवी

मुँह ढाँप के मैं जो रो रहा हूँ

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

गिला क्या करूँ ऐ फ़लक बता मिरे हक़ में जब ये जहाँ नहीं

गोर बचन सिंह दयाल मग़मूम

मसरफ़ के बग़ैर जल रहा हूँ

गोपाल मित्तल

किस क़दर दिलरुबा-नुमा है दिल

ग़ुलाम मौला क़लक़

तुम्हें ख़बर भी है ये तुम ने किस से क्या माँगा

ग़नी एजाज़

सुख़न जो उस ने कहे थे गिरह से बाँध लिए

फ़ाज़िल जमीली

अपनी आग में

फ़ारूक़ मुज़्तर

दिल नहीं मिलने का फिर मेरा सितमगर टूट कर

फ़रोग़ हैदराबादी

अपने दरिया की प्यास

फ़ारिग़ बुख़ारी

ज़बाँ मुद्दआ-आश्ना चाहता हूँ

फ़ानी बदायुनी

मुझ को मिरे नसीब ने रोज़-ए-अज़ल से क्या दिया

फ़ानी बदायुनी

मेरे लब पर कोई दुआ ही नहीं

फ़ानी बदायुनी

मौसीक़ी से इलाज

दिलावर फ़िगार

देख जुर्म-ओ-सज़ा की बात न कर

द्वारका दास शोला

कहीं जमाल-ए-अज़ल हम को रूनुमा न मिला

दर्शन सिंह

डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम

दाग़ देहलवी

एक मुद्दत से उसे देखा नहीं

चाँदनी पांडे

इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे

बेखुद बदायुनी

तुम्हारे हुस्न की तस्ख़ीर आम होती है

बहज़ाद लखनवी

सहारा मौजों का ले ले के बढ़ रहा हूँ मैं

बेदम शाह वारसी

सबा गुल-ए-रेज़ जाँ-परवर फ़ज़ा है

बशीर फ़ारूक़

चाहा बहुत कि इश्क़ की फिर इब्तिदा न हो

बाक़र मेहदी

कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है

बहराम जी

रसूल-ए-काज़िब

अज़ीज़ क़ैसी

उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं

अज़हर फ़राग़

तक़द्दुस-ए-मआब

असरार जामई

जिस दिन से यार मुझ से वो शोख़ आश्ना हुआ

आसिफ़ुद्दौला

मजाज़ कैसा कहाँ हक़ीक़त अभी तुझे कुछ ख़बर नहीं है

असग़र गोंडवी

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