प्यार Poetry (page 7)

न उस को भूल पाए हैं न हम ने याद रक्खा है

ज़फ़र इक़बाल

न कोई बात कहनी है न कोई काम करना है

ज़फ़र इक़बाल

न गुमाँ रहने दिया है न यक़ीं रहने दिया

ज़फ़र इक़बाल

कुछ दिनों से जो तबीअत मिरी यकसू कम है

ज़फ़र इक़बाल

ख़ुश बहुत फिरते हैं वो घर में तमाशा कर के

ज़फ़र इक़बाल

ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझे

ज़फ़र इक़बाल

जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता

ज़फ़र इक़बाल

हमें भी मतलब-ओ-मअ'नी की जुस्तुजू है बहुत

ज़फ़र इक़बाल

हमारे सर से वो तूफ़ाँ कहीं गुज़र गए हैं

ज़फ़र इक़बाल

दरिया दूर नहीं और प्यासा रह सकता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

छुपा हुआ जो नुमूदार से निकल आया

ज़फ़र इक़बाल

भूल बैठा था मगर याद भी ख़ुद मैं ने किया

ज़फ़र इक़बाल

बात ऐसी भी कोई नहीं कि मोहब्बत बहुत ज़ियादा है

ज़फ़र इक़बाल

अपने इंकार के बर-अक्स बराबर कोई था

ज़फ़र इक़बाल

आग का रिश्ता निकल आए कोई पानी के साथ

ज़फ़र इक़बाल

जब इतनी जाँ से मोहब्बत बढ़ा के रक्खी थी

ज़फ़र गोरखपुरी

ये जो तेरी आँखों में मा'नी-ए-वफ़ा सा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

मुझ को ता-उम्र तड़पने की सज़ा ही देना

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

जब भी माज़ी के नज़ारे को नज़र जाएगी

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

ज़हर है मेरे रग-ओ-पै में मोहब्बत शायद

यूसुफ़ ज़फ़र

ख़बर

यूसुफ़ ज़फ़र

यारो हर ग़म ग़म-ए-याराँ है क़रीब आ जाओ

यूसुफ़ ज़फ़र

यारो हर ग़म ग़म-ए-याराँ है क़रीब आ जाओ

यूसुफ़ ज़फ़र

मैं लिपटता रहा हूँ ख़ारों से

यूसुफ़ ज़फ़र

बे-तलब एक क़दम घर से न बाहर जाऊँ

यूसुफ़ ज़फ़र

वतन

यूसुफ़ राहत

दर्द हद से सिवा दिया तू ने

यूनुस ग़ाज़ी

चुप रहूँ कैसे मैं बर्बाद-ए-जहाँ होने तक

यूनुस ग़ाज़ी

तेरी आँखों से मिली जुम्बिश मिरी तहरीर को

योगेन्द्र बहल तिश्ना

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