प्यार Poetry (page 6)

वो नैरंग-ए-उल्फ़त को क्या जानता है

ज़हीर देहलवी

वो जो कुछ कुछ निगह मिलाने लगे

ज़हीर देहलवी

तल्ख़ शिकवे लब-ए-शीरीं से मज़ा देते हैं

ज़हीर देहलवी

हम-नशीं उन के तरफ़-दार बने बैठे हैं

ज़हीर देहलवी

गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या

ज़हीर देहलवी

दे हश्र के वादे पे उसे कौन भला क़र्ज़

ज़हीर देहलवी

बुतों से बच के चलने पर भी आफ़त आ ही जाती है

ज़हीर देहलवी

बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया

ज़हीर देहलवी

ऐसे की मोहब्बत को मोहब्बत न कहेंगे

ज़हीर देहलवी

इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए

ज़फर ज़ैदी

इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए

ज़फर ज़ैदी

कहते हैं इश्क़ का अंजाम बुरा होता है

ज़फ़र ताबाँ

कहते हैं इश्क़ का अंजाम बुरा होता है

ज़फ़र ताबाँ

याद में तेरी दो-आलम को भुलाना है हमें

ज़फ़र ताबाँ

याद में तेरी दो आलम को भुलाना है हमें

ज़फ़र ताबाँ

मोहब्बत की जिस को ख़ुमारी लगे

ज़फ़र कमाली

हँसी में हक़ जता कर घर-जमाई छीन लेता है

ज़फ़र कमाली

वो नहीं उस की मगर जादूगरी मौजूद है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

तुम ही बतलाओ कि उस की क़द्र क्या होगी तुम्हें

ज़फ़र इक़बाल

रूह फूँकेगा मोहब्बत की मिरे पैकर में वो

ज़फ़र इक़बाल

पलट पड़ा जो मैं सर फोड़ कर मोहब्बत में

ज़फ़र इक़बाल

कहाँ तक हो सका कार-ए-मोहब्बत क्या बताएँ

ज़फ़र इक़बाल

जैसी अब है ऐसी हालत में नहीं रह सकता

ज़फ़र इक़बाल

अब उस की दीद मोहब्बत नहीं ज़रूरत है

ज़फ़र इक़बाल

ज़मीं पे एड़ी रगड़ के पानी निकालता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

यूँ भी होता है कि यक दम कोई अच्छा लग जाए

ज़फ़र इक़बाल

यहाँ सब से अलग सब से जुदा होना था मुझ को

ज़फ़र इक़बाल

तक़ाज़ा हो चुकी है और तमन्ना हो रहा है

ज़फ़र इक़बाल

सिर्फ़ आँखें थीं अभी उन में इशारे नहीं थे

ज़फ़र इक़बाल

पाए हुए इस वक़्त को खोना ही बहुत है

ज़फ़र इक़बाल

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