अब उस की दीद मोहब्बत नहीं ज़रूरत है
कि उस से मिल के बिछड़ने की आरज़ू है बहुत
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एक ही बार नहीं है वो दोबारा कम है
एक ना-मौजूदगी रह जाएगी चारों तरफ़
हमारा इश्क़ रवाँ है रुकावटों में 'ज़फ़र'
अभी मेरी अपनी समझ में भी नहीं आ रही
आज कल उस की तरह हम भी हैं ख़ाली ख़ाली
मुस्तरद हो गया जब तेरा क़ुबूला हुआ मैं
एक दिन सुब्ह जो उट्ठें तो ये दुनिया ही न हो
लर्ज़िश-ए-पर्दा-ए-इज़हार का मतलब क्या है
हर नया ज़ाइक़ा छोड़ा है जो औरों के लिए
मेरे अंदर वो मेरे सिवा कौन था
कोई इस बात को तस्लीम करे या न करे
जहाँ मेरे न होने का निशाँ फैला हुआ है