अभी मेरी अपनी समझ में भी नहीं आ रही
मैं जभी तो बात को मुख़्तसर नहीं कर रहा
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मौत के साथ हुई है मिरी शादी सो 'ज़फ़र'
इक लहर है कि मुझ में उछलने को है 'ज़फ़र'
मिरे निशान बहुत हैं जहाँ भी होता हूँ
इक दूर के सफ़र पे रवाना भी हूँ 'ज़फ़र'
यूँ भी होता है कि यक दम कोई अच्छा लग जाए
बहुत सुलझी हुई बातों को भी उलझाए रखते हैं
अपनी ये शान-ए-बग़ावत कोई देखे आ कर
हवा-ए-वादी-ए-दुश्वार से नहीं रुकता
बदला ये लिया हसरत-ए-इज़हार से हम ने
तिरे रास्तों से जभी गुज़र नहीं कर रहा
ये नहीं कहता कि दोबारा वही आवाज़ दे
कभी अव्वल नज़र आना कभी आख़िर होना