प्यार Poetry (page 2)

दिल महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है

नज़र से छुप गए दिल से जुदा तो होना था

जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया

जाम ख़ाली हैं मय-ए-नाब कहाँ से लाऊँ

इज़हार-ए-हाल सुन के हमारा कभी कभी

हर वो हंगामा ना-गहाँ गुज़रा

घटाएँ छाई हैं साग़र उठा ले जिस का जी चाहे

न शिकवा लब तक आएगा न नाला दिल से निकलेगा

पेड़ों की घनी छाँव और चैत की हिद्दत थी

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

जाने हम ये किन गलियों में ख़ाक उड़ा कर आ जाते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

दीपक-राग है चाहत अपनी काहे सुनाएँ तुम्हें

ज़ुहूर नज़र

दिन ऐसे यूँ तो आए ही कब थे जो रास थे

ज़ुहूर नज़र

किसी भूके से मत पूछो मोहब्बत किस को कहते हैं

ज़ुबैर अली ताबिश

रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं

ज़ुबैर अली ताबिश

पहले मुफ़्त में प्यास बटेगी

ज़ुबैर अली ताबिश

कलियाँ चटक रही हैं बहारों की गोद में

ज़ोहरा नसीम

अभी मुझ से किसी को मोहब्बत नहीं हुई

ज़ियाउल हसन

बोल पड़ते हैं हम जो आगे से

ज़िया मज़कूर

जब तक कि मोहब्बत का चलन आम रहेगा

ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

राहत-ए-वस्ल बिना हिज्र की शिद्दत के बग़ैर

ज़िया ज़मीर

जिस तरह प्यासा कोई आब-ए-रवाँ तक पहुँचे

ज़िया ज़मीर

हँसते हँसते भी सोगवार हैं हम

ज़िया ज़मीर

हम

ज़िया जालंधरी

उफ़्ताद तबीअत से इस हाल को हम पहुँचे

ज़िया जालंधरी

जुनूँ पे अक़्ल का साया है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है

ज़िया फ़तेहाबादी

कहाँ के इश्क़-ओ-मोहब्बत किधर के हिज्र ओ विसाल

ज़ेहरा निगाह

एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की

ज़ेहरा निगाह

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

ज़ेहरा निगाह

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