जब तक कि मोहब्बत का चलन आम रहेगा
हर लब पे मिरा ज़िक्र मिरा नाम रहेगा
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इतने नादिम न होइए आख़िर
आप के साथ मुस्कुराने में
पास-ए-पिंदार-ए-तबीअत दिल अगर रख ले तो क्या
जुनून-ए-इश्क़-ए-सर बेदार भी है
हम से वाइज़ ने बात की होती
हमें भी ज़रूरत थी इक शख़्स की
गो उन्हें राह-ए-इंहिराफ़ नहीं
गोश-ए-मुश्ताक़-ए-सदा-ए-नाला-ए-दिल अब कहाँ
जुनूँ शोला-सामाँ ख़िरद शबनम-अफ़्शाँ
मेरी तज्वीज़ पर ख़फ़ा क्यूँ हो
अक़्ल कुछ ज़ीस्त की कफ़ील नहीं