इतने नादिम न होइए आख़िर
अच्छे-अच्छों से भूल होती है
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इसी तरह बातें किए जाइए
गोश-ए-मुश्ताक़-ए-सदा-ए-नाला-ए-दिल अब कहाँ
पड़ती नहीं है दिल पे तिरे हुस्न की किरन
आप के साथ मुस्कुराने में
जुनूँ शोला-सामाँ ख़िरद शबनम-अफ़्शाँ
हम से वाइज़ ने बात की होती
फ़िक्र-मंदी फ़ुज़ूल होती है
यक़ीं गर करो तुम बहुत ख़ूब है
दीवाना-ए-जुस्तुजू हो गया चाँद
पास-ए-पिंदार-ए-तबीअत दिल अगर रख ले तो क्या
मुख़्तसर बात-चीत अच्छी है