मुख़्तसर बात-चीत अच्छी है
लेकिन इतना भी इख़्तिसार न कर
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यक़ीं गर करो तुम बहुत ख़ूब है
गोश-ए-मुश्ताक़-ए-सदा-ए-नाला-ए-दिल अब कहाँ
दीवाना-ए-जुस्तुजू हो गया चाँद
पास-ए-पिंदार-ए-तबीअत दिल अगर रख ले तो क्या
जुनूँ शोला-सामाँ ख़िरद शबनम-अफ़्शाँ
फ़िक्र-मंदी फ़ुज़ूल होती है
मेरी तज्वीज़ पर ख़फ़ा क्यूँ हो
जुनून-ए-इश्क़-ए-सर बेदार भी है
हमें भी ज़रूरत थी इक शख़्स की
जब तक कि मोहब्बत का चलन आम रहेगा
आरिज़ से तिरे सुब्ह की तोहमत न उठेगी
पड़ती नहीं है दिल पे तिरे हुस्न की किरन