आगे प्रतीक्षा करें Poetry (page 7)

नज़र फ़रेब-ए-क़ज़ा खा गई तो क्या होगा

एहसान दानिश

ख़ुद अपनी आग में सारे चराग़ जलते हैं

दिलावर अली आज़र

हवा ने इस्म कुछ ऐसा पढ़ा था

दिलावर अली आज़र

हँसी गुलों में सितारों में रौशनी न मिली

दर्शन सिंह

कोई छींटा पड़े तो 'दाग़' कलकत्ते चले जाएँ

दाग़ देहलवी

हाथ निकले अपने दोनों काम के

दाग़ देहलवी

भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं

दाग़ देहलवी

एक ख़्वाब

बिलाल अहमद

वो थे जवाब के साहिल पे मुंतज़िर लेकिन

बेकल उत्साही

चश्म-ए-हसीं में है न रुख़-ए-फ़ित्ना-गर में है

बहज़ाद लखनवी

वो दरिया-बार अश्कों की झड़ी है

बयान मेरठी

हम जैसे तेग़-ए-ज़ुल्म से डर भी गए तो क्या

बासिर सुल्तान काज़मी

दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो

बासिर सुल्तान काज़मी

ज़र्रों में कुनमुनाती हुई काएनात हूँ

बशीर बद्र

ना-रसा

बशर नवाज़

हम ज़र्रे हैं ख़ाक-ए-रहगुज़र के

बाक़ी सिद्दीक़ी

तू नहीं तो तेरा दर्द-ए-जाँ-फ़ज़ा मिल जाएगा

बाक़ी अहमदपुरी

गोडो

बाक़र मेहदी

अलविदा'अ

बाक़र मेहदी

दिल का मोआ'मला वही महशर वही रहा

बलराज कोमल

यकायक अक्स धुँदलाने लगे हैं

बकुल देव

कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ

बद्र-ए-आलम ख़लिश

जिस को चलना है चले रख़्त-ए-सफ़र बाँधे हुए

अज़ीज़ तमन्नाई

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

अज़ीज़ लखनवी

साफ़ बातिन देर से हैं मुंतज़िर

अज़ीज़ लखनवी

ग़लत है दिल पे क़ब्ज़ा क्या करेगी बे-ख़ुदी मेरी

अज़ीज़ लखनवी

फूल जो दिल की रहगुज़र में है

अज़ीज़ अन्सारी

ये क्या कि रंग हाथों से अपने छुड़ाएँ हम

अज़हर इनायती

मुझे जाना है इक दिन

असरार-उल-हक़ मजाज़

मेहमान

असरार-उल-हक़ मजाज़

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