नींद Poetry (page 9)

ये मैं ने माना कि पहरा है सख़्त रातों का

सरफ़राज़ नवाज़

उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती

सरफ़राज़ ख़ालिद

जिसे तू ने समझा है ज़िंदगी उसी इंक़लाब का नाम है

सरीर काबिरी

तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है

सरदार अंजुम

ख़ाली आँखों का मकान

सारा शगुफ़्ता

मिलता जो कोई टुकड़ा इस चर्ख़-ए-ज़बरजद में

साक़िब लखनवी

ग़श भी आया मिरी पुर्सिश को क़ज़ा भी आई

साक़िब लखनवी

ख़ाली बोरे में ज़ख़्मी बिल्ला

साक़ी फ़ारुक़ी

ज़िंदा रहने के तज़्किरे हैं बहुत

साक़ी फ़ारुक़ी

रेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुई

साक़ी फ़ारुक़ी

रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं फिर से हो जाऊँगा तन्हा इक दिन

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं किसी जवाज़ के हिसार में न था

साक़ी फ़ारुक़ी

ख़ाक नींद आए अगर दीदा-ए-बेदार मिले

साक़ी फ़ारुक़ी

एक दिन ज़ेहन में आसेब फिरेगा ऐसा

साक़ी फ़ारुक़ी

शाएरी झूट सही इश्क़ फ़साना ही सही

समीना राजा

पत्थर की नींद सोती है बस्ती जगाइए

समद अंसारी

शब के पुर-हौल मनाज़िर से बचा ले मुझ को

सलीम सिद्दीक़ी

ग़म-ए-हयात मिटाना है रो के देखते हैं

सलीम सिद्दीक़ी

इक दरीचे की तमन्ना मुझे दूभर हुई है

सलीम सिद्दीक़ी

इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता

सलीम कौसर

डूबने वाले भी तन्हा थे तन्हा देखने वाले थे

सलीम कौसर

दिल-ए-सीमाब-सिफ़त फिर तुझे ज़हमत दूँगा

सलीम कौसर

दस्त-ए-दुआ को कासा-ए-साइल समझते हो

सलीम कौसर

बस इक रस्ता है इक आवाज़ और एक साया है

सलीम कौसर

कैसे क़िस्से थे कि छिड़ जाएँ तो उड़ जाती थी नींद

सलीम अहमद

उम्र भर काविश-ए-इज़हार ने सोने न दिया

सलीम अहमद

जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई

सलीम अहमद

बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे

सलीम अहमद

बू-ए-गुल बाद-ए-सबा लाई बहुत देर के बा'द

सलाम संदेलवी

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