उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती
ये उस का काम नहीं है तो मेरा काम है क्या
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हम किसी और वक़्त के हैं असीर
मैं जिस को सोचता रहता हूँ क्या है वो आख़िर
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
नज़्म
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
तिरी दुआएँ भी शामिल हैं कोशिशों में मिरी
तमाम उम्र ब-क़ैद-ए-सफ़र रहा हूँ मैं
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
होश जाता रहा दुनिया की ख़बर ही न रही