हम किसी और वक़्त के हैं असीर
सुब्ह के शाम के रहे ही नहीं
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ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था
तिरी दुआएँ भी शामिल हैं कोशिशों में मिरी
वो मुज़्तरिब था बहुत मुझ को दरमियाँ कर के
उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती
नज़्म
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
वो चेहरा मुझे साफ़ दिखाई नहीं देता
उस से कह दो कि मुझे उस से नहीं मिलना है
मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
अजीब फ़ुर्सत-ए-आवारगी मिली है मुझे
बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं