तिरी दुआएँ भी शामिल हैं कोशिशों में मिरी
मुसीबतों का न टलना अजीब लगता है
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दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई
मैं तो अब शहर में हूँ और कोई रात गए
सुनते हैं बयाबाँ भी कभी शहर रहा था
वो मुज़्तरिब था बहुत मुझ को दरमियाँ कर के
तुम थे तो हर इक दर्द तुम्हीं से था इबारत
आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर
सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
देर तक जागते रहने का सबब याद आया
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
तमाम उम्र ब-क़ैद-ए-सफ़र रहा हूँ मैं