सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
क़रीब आ मिरी आँखों के ख़्वाब, ज़िंदा हूँ
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(425) Peoples Rate This
उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती
वो मुज़्तरिब था बहुत मुझ को दरमियाँ कर के
पैरों से बाँध लेता हूँ पिछली मसाफ़तें
जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में
इब्तिदा उस ने ही की थी मिरी रुस्वाई की
बात तो ये है कि वो घर से निकलता भी नहीं
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
आँख ही आँख थी मंज़र भी नहीं था कोई
अब जिस्म के अंदर से आवाज़ नहीं आती
न चाँद का न सितारों न आफ़्ताब का है
मैं जिस को सोचता रहता हूँ क्या है वो आख़िर
आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर