मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
क्या तुम को भी अब मेरी ख़बर होने लगी है
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अब मुझ में कोई बात नई ढूँढने वालो
मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
रौनक़-ए-बज़्म नहीं था कोई तुझ से पहले
सहरा कोई बस्ती कोई दरिया है कि तुम हो
न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर
हम किसी और वक़्त के हैं असीर
वो भी न आया उम्र-ए-गुज़िश्ता के मिस्ल ही
देर तक जागते रहने का सबब याद आया
इब्तिदा उस ने ही की थी मिरी रुस्वाई की
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था