न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
मगर अभी मिरे ग़म का हिसाब का बाक़ी है
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नज़्म
रौनक़-ए-बज़्म नहीं था कोई तुझ से पहले
एक दिन उस की निगाहों से भी गिर जाएँगे
अब मुझ में कोई बात नई ढूँढने वालो
वो चेहरा मुझे साफ़ दिखाई नहीं देता
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
बात तो ये है कि वो घर से निकलता भी नहीं
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
शरीक वो भी रहा काविश-ए-मोहब्बत में
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती