किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
तुम ही बताओ कि क़िस्सा ये किस किताब का है
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लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
ज़ीस्त की यकसानियत से तंग आ जाते हैं सब
एक दिन उस की निगाहों से भी गिर जाएँगे
अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई
पानियों में खेल कुछ ऐसा भी होना चाहिए था
उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती
सुनते हैं बयाबाँ भी कभी शहर रहा था
वो मुज़्तरिब था बहुत मुझ को दरमियाँ कर के
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था
आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर