तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
तो जाएँ और कहीं उस ने जब पुकारा नहीं
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पैरों से बाँध लेता हूँ पिछली मसाफ़तें
अजीब फ़ुर्सत-ए-आवारगी मिली है मुझे
सहरा कोई बस्ती कोई दरिया है कि तुम हो
उसी के ख़्वाब थे सारे उसी को सौंप दिए
शरीक वो भी रहा काविश-ए-मोहब्बत में
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
नज़्म
पानियों में खेल कुछ ऐसा भी होना चाहिए था
सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
हम किसी और वक़्त के हैं असीर
इक तू ने ही नहीं की जुनूँ की दुकान बंद