इक तू ने ही नहीं की जुनूँ की दुकान बंद
सौदा कोई हमारे भी सर में नहीं रहा
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जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में
तमाम उम्र ब-क़ैद-ए-सफ़र रहा हूँ मैं
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
ये काएनात भी क्या क़ैद-ख़ाना है कोई
देर तक जागते रहने का सबब याद आया
अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती
तिरी दुआएँ भी शामिल हैं कोशिशों में मिरी
बात तो ये है कि वो घर से निकलता भी नहीं
मैं जिस को सोचता रहता हूँ क्या है वो आख़िर
दिल जो टूटा है तो फिर याद नहीं है कोई
ज़ीस्त की यकसानियत से तंग आ जाते हैं सब