मैं जिस को सोचता रहता हूँ क्या है वो आख़िर
मिरे लबों पे जो रहता है उस का नाम है क्या
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सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
ज़ीस्त की यकसानियत से तंग आ जाते हैं सब
उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती
इब्तिदा उस ने ही की थी मिरी रुस्वाई की
सुनते हैं बयाबाँ भी कभी शहर रहा था
तिरी दुआएँ भी शामिल हैं कोशिशों में मिरी
उस से कह दो कि मुझे उस से नहीं मिलना है
पैरों से बाँध लेता हूँ पिछली मसाफ़तें
हम किसी और वक़्त के हैं असीर
जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में
मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार