मैं अपने-आप से आगे निकल गया हूँ बहुत
किसी सफ़र के हवाले ये जिस्म-ओ-जाँ कर के
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तिरी दुआएँ भी शामिल हैं कोशिशों में मिरी
बात तो ये है कि वो घर से निकलता भी नहीं
उस से कह दो कि मुझे उस से नहीं मिलना है
मैं तो अब शहर में हूँ और कोई रात गए
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं
वो भी न आया उम्र-ए-गुज़िश्ता के मिस्ल ही
न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
इब्तिदा उस ने ही की थी मिरी रुस्वाई की
देर तक जागते रहने का सबब याद आया
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश