मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
मिरे अंदर तो कोई और पैदा होने वाला है
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अजीब फ़ुर्सत-ए-आवारगी मिली है मुझे
सुनते हैं बयाबाँ भी कभी शहर रहा था
होश जाता रहा दुनिया की ख़बर ही न रही
अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
नज़्म
तमाम उम्र ब-क़ैद-ए-सफ़र रहा हूँ मैं
पानियों में खेल कुछ ऐसा भी होना चाहिए था
तेरे होने से भी अब कुछ नहीं होने वाला
तुम थे तो हर इक दर्द तुम्हीं से था इबारत
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
हम किसी और वक़्त के हैं असीर
देर तक जागते रहने का सबब याद आया