तेरे होने से भी अब कुछ नहीं होने वाला
मुझ में बाक़ी ही नहीं है कोई रोने वाला
उस से मिलता हूँ तो लगता है कि मेरे अंदर
नींद से जाग गया है कोई सोने वाला
मुझ को इस खेल के आदाब सभी हैं मालूम
मैं तो इस खेल में शामिल नहीं होने वाला
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अब मुझ में कोई बात नई ढूँढने वालो
मौसम कोई भी हो पे बदलता नहीं हूँ मैं
मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
सियाह रात के पहलू में जिस्म के अंदर
अपनी सूरत को बदलना ही नहीं चाहता मैं
वो मुज़्तरिब था बहुत मुझ को दरमियाँ कर के
मिलते हो तो अब तुम भी बहुत रहते हो ख़ामोश
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
तमाम उम्र ब-क़ैद-ए-सफ़र रहा हूँ मैं
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
पैरों से बाँध लेता हूँ पिछली मसाफ़तें
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी