मौसम कोई भी हो पे बदलता नहीं हूँ मैं
या'नी किसी भी साँचे में ढलता नहीं हूँ मैं
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तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर
आँख ही आँख थी मंज़र भी नहीं था कोई
मिरे मरने का ग़म तो बे-सबब होगा कि अब के बार
होश जाता रहा दुनिया की ख़बर ही न रही
बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं
सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
आइने में कहीं गुम हो गई सूरत मेरी
नज़्म