होश जाता रहा दुनिया की ख़बर ही न रही
जब कि हम भूल गए ख़ुद को वो तब याद आया
Faiz Ahmad Faiz
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अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
हमारे काँधे पे इस बार सिर्फ़ आँखें हैं
नज़्म
रौनक़-ए-बज़्म नहीं था कोई तुझ से पहले
सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
वो चेहरा मुझे साफ़ दिखाई नहीं देता
अब मुझ में कोई बात नई ढूँढने वालो
मौसम कोई भी हो पे बदलता नहीं हूँ मैं
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
हम किसी और वक़्त के हैं असीर
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर
वो भी न आया उम्र-ए-गुज़िश्ता के मिस्ल ही