पानियों में खेल कुछ ऐसा भी होना चाहिए था
बीच दरिया में कोई कश्ती डुबोना चाहिए था
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अब मुझ में कोई बात नई ढूँढने वालो
अपने ही साए से हर गाम लरज़ जाता हूँ
तो देखें और किसी को जो वो नहीं मौजूद
नज़्म
लम्बी है बहुत आज की शब जागने वालो
ये काएनात भी क्या क़ैद-ख़ाना है कोई
हम किसी और वक़्त के हैं असीर
मैं जिस को सोचता रहता हूँ क्या है वो आख़िर
एक दिन उस की निगाहों से भी गिर जाएँगे
जो तुम कहते हो मुझ से पहले तुम आए थे महफ़िल में
न रात बाक़ी है कोई न ख़्वाब बाक़ी है
ख़्वाब मैले हो गए थे उन को धोना चाहिए था