ज़ीस्त की यकसानियत से तंग आ जाते हैं सब
एक दिन तू भी मिरी बातों से उकता जाएगा
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(521) Peoples Rate This
मैं अपने-आप से आगे निकल गया हूँ बहुत
सितम किए हैं तो क्या तुझ से है हयात मिरी
तुम थे तो हर इक दर्द तुम्हीं से था इबारत
उसी से पूछो उसे नींद क्यूँ नहीं आती
बादा-ओ-जाम के रहे ही नहीं
ये काएनात भी क्या क़ैद-ख़ाना है कोई
आँखों ने बनाई थी कोई ख़्वाब की तस्वीर
ताबिश-ए-गेसू-ए-ख़मदार लिए फिरता है
रौनक़-ए-बज़्म नहीं था कोई तुझ से पहले
वो मुज़्तरिब था बहुत मुझ को दरमियाँ कर के
किसी ने जाँ ही लुटा दी वफ़ाओं की ख़ातिर