जिसे तू ने समझा है ज़िंदगी उसी इंक़लाब का नाम है

जिसे तू ने समझा है ज़िंदगी उसी इंक़लाब का नाम है

कभी दिन हुआ कभी शब हुई कभी सुब्ह है कभी शाम है

तह-ए-ख़ाक भी दिल-ए-मुब्तला को कभी क़रार न आएगा

हूँ अभी से हश्र का मुंतज़िर कि नवेद जल्वा-ए-आम है

कोई हौसला है न मुद्दआ' कोई आरज़ू है न इल्तिजा

मिरे दिल में इक तिरी याद है मिरे लब पे इक तिरा नाम है

वहाँ वा'दे होते हैं आए दिन सर-ए-शाम ख़्वाब में आएँगे

यहाँ इज़्तिराब-ए-तमाम से मिरी शब की नींद हराम है

तू शराब दे कि न दे मगर मिरे दिल को तोड़ न साक़िया

कि ग़रीब बादा-परस्त का यही शीशा है यही जाम है

मिरे ज़ौक़-ए-दीद का हो बुरा कहाँ जा के सेंके कोई नज़र

न तजल्ली-ए-सर-ए-रह-गुज़र न तजल्ली-ए-सर-ए-बाम है

मिरी क़ैद-ए-ज़ीस्त के साथ ही है अजल की क़ैद लगी हुई

हूँ सरीर में वो असीर-ए-ग़म जो क़फ़स में भी तह-ए-दाम है

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In Hindi By Famous Poet Sareer Kabiri. is written by Sareer Kabiri. Complete Poem in Hindi by Sareer Kabiri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.