सीट Poetry (page 5)

जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कभी कभी याद में उभरते हैं नक़्श-ए-माज़ी मिटे मिटे से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इश्क़ ने जिस दिल पे क़ब्ज़ा कर लिया

दत्तात्रिया कैफ़ी

ज़िंदगी का किस लिए मातम रहे

दत्तात्रिया कैफ़ी

ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो

दर्शन सिंह

हँसी गुलों में सितारों में रौशनी न मिली

दर्शन सिंह

आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप

बेख़ुद देहलवी

रहीन-ए-आस रही है न महव-ए-यास रही

बेकल उत्साही

न कुनिश्त ओ कलीसा से काम हमें दर-ए-दैर न बैत-ए-हरम से ग़रज़

बेदम शाह वारसी

सब काएनात-ए-हुस्न का हासिल लिए हुए

बासित भोपाली

टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच

ज़फ़र

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

ज़रूरतों की हमाहमी में जो राह चलते भी टोकती है वो शाइ'री है

बद्र-ए-आलम ख़लिश

बहुत क़रीने की ज़िंदगी थी अजब क़यामत में आ बसा हूँ

अज़्म बहज़ाद

बैन-उल-अदमैन

अज़ीज़ क़ैसी

दिल के अज्ज़ा में नहीं मिलता कोई जुज़्व-ए-निशात

अज़ीज़ लखनवी

'मीर'

अज़ीज़ लखनवी

लज़्ज़त-ए-ग़म

अज़ीज़ लखनवी

वो शब के साए में फ़स्ल-ए-नशात काटते हैं

अज़हर अदीब

मादाम

असरार-उल-हक़ मजाज़

इंक़लाब

असरार-उल-हक़ मजाज़

आज की रात

असरार-उल-हक़ मजाज़

आज

असरार-उल-हक़ मजाज़

साक़ी-ए-गुलफ़ाम बा-सद एहतिमाम आ ही गया

असरार-उल-हक़ मजाज़

न हम-आहंग-ए-मसीहा न हरीफ़-ए-जिब्रील

असरार-उल-हक़ मजाज़

रुक गया आ के जहाँ क़ाफ़िला-ए-रंग-ओ-नशात

असलम महमूद

न मलाल-ए-हिज्र न मुंतज़िर हैं हवा-ए-शाम-ए-विसाल के

असलम महमूद

मैं हज्व इक अपने हर क़सीदे की रद में तहरीर कर रहा हूँ

असलम महमूद

जल रहा हूँ तो अजब रंग ओ समाँ है मेरा

असलम महमूद

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