दिल के अज्ज़ा में नहीं मिलता कोई जुज़्व-ए-निशात
इस सहीफ़े से किसी ने इक वरक़ कम कर दिया
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मुझ को का'बा में भी हमेशा शैख़
इश्क़ जो मेराज का इक ज़ीना है
तुम्हें हँसते हुए देखा है जब से
जीते हैं कैसे ऐसी मिसालों को देखिए
'मीर'
काम दुनिया में बहुत करना है
वाइज़ बुतान-ए-दैर से नफ़रत न कीजिए
दुनिया को वलवला दिल-ए-नाशाद से हुआ
तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं
हुस्न-ए-आरास्ता क़ुदरत का अतिय्या है मगर
मिरे दहन में अगर आप की ज़बाँ होती