रुक गया आ के जहाँ क़ाफ़िला-ए-रंग-ओ-नशात
कुछ क़दम आगे ज़रा बढ़ के मकाँ है मेरा
Gulzar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(655) Peoples Rate This
नए पैकर नए साँचे में ढलना चाहता हूँ मैं
देख के अर्ज़ां लहू सुर्ख़ी-ए-मंज़र ख़मोश
मैं एक रेत का पैकर था और बिखर भी गया
तू अपने शहर-ए-तरब से न पूछ हाल मिरा
वो दर्द हूँ कोई चारा नहीं है जिस का कहीं
दश्त मरऊब है कितना मिरी वीरानी से
पाँव उस के भी नहीं उठते मिरे घर की तरफ़
मैं हज्व इक अपने हर क़सीदे की रद में तहरीर कर रहा हूँ
किया गर्दिशों के हवाले उसे चाक पर रख दिया
मिरी कहानी रक़म हुई है हवा के औराक़-ए-मुंतशिर पर