उठो Poetry (page 2)

फूल अपने वस्फ़ सुनते हैं उस ख़ुश-नसीब से

वसीम ख़ैराबादी

भूका बंगाल

वामिक़ जौनपुरी

जीने का लुत्फ़ कुछ तो उठाओ नशे में आओ

वामिक़ जौनपुरी

है क़ानून-ए-फ़ितरत कोई क्या करेगा

वलीउल्लाह वली

यूँ घर से मोहब्बत के क्या भाग चले जाना

वलीउल्लाह मुहिब

मोहब्बत से तरीक़-ए-दोस्ती से चाह से माँगो

वलीउल्लाह मुहिब

यार उठ गए दुनिया से अग़्यार की बारी है

वली उज़लत

आरज़ू ले के कोई घर से निकलते क्यूँ हो

वाली आसी

सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे

वाजिद अली शाह अख़्तर

रौशन हों दिल के दाग़ तो लब पर फ़ुग़ाँ कहाँ

वहीदा नसीम

ज़बान-ए-ख़ल्क़ पे आया तो इक फ़साना हुआ

वहीद अख़्तर

ख़ुश्बू है कभी गुल है कभी शम्अ कभी है

वहीद अख़्तर

पचासी साल नीचे गिर गए

वहीद अहमद

हमारे दरमियाँ जो उठ रही थी

विकास शर्मा राज़

हवा के साथ यारी हो गई है

विकास शर्मा राज़

शहर बेज़ार रहगुज़र तन्हा

विजय शर्मा अर्श

बारा चाँद गए पूनम के प्यार भरा इक सावन भी

विजय शर्मा अर्श

हर इक का दर्द उसी आशुफ़्ता-सर में तन्हा था

उमर अंसारी

वो आई शाम-ए-ग़म वक़्फ़-ए-बला होने का वक़्त आया

तिलोकचंद महरूम

वो जो इक इल्ज़ाम था उस पर कहीं

तौक़ीर रज़ा

आ गई धूप मिरी छाँव के पीछे पीछे

तौक़ीर रज़ा

न जाने आग कैसी आइनों में सो रही थी

तौक़ीर अब्बास

तू क्यूँ पास से उठ चला बैठे बैठे

मीर तस्कीन देहलवी

वो ख़ुद गया है उस का असर तो नहीं गया

तारिक़ नईम

हवा में आए तो लौ भी न साथ ली हम ने

तारिक़ नईम

तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए

तहसीन फ़िराक़ी

भूले तो जैसे रब्त कोई दरमियाँ न था

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह

ताबाँ अब्दुल हई

है आरज़ू ये जी में उस की गली में जावें

ताबाँ अब्दुल हई

एक ही जाम को पिला साक़ी

ताबाँ अब्दुल हई

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