उठो Poetry (page 17)

मौजूद हैं कितने ही तुझ से भी हसीं कर के

अहमद जावेद

नींद से उठ कर वो कहना याद है

अहमद हुसैन माइल

महशर में चलते चलते करूँगा अदा नमाज़

अहमद हुसैन माइल

हो गए मुज़्तर देखते ही वो हिलती ज़ुल्फ़ें फिरती नज़र हम

अहमद हुसैन माइल

हिंसा के पहले मुझे फिर रुला गया इक शख़्स

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

उड़ कर सुराग़-ए-कूचा-ए-दिलबर लगाइए

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम

आग़ा हज्जू शरफ़

सन्नाटे का आलम क़ब्र में है है ख़्वाब-ए-अदम आराम नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

रंग जिन के मिट गए हैं उन में यार आने को है

आग़ा हज्जू शरफ़

घिसते घिसते पाँव में ज़ंजीर आधी रह गई

आग़ा हज्जू शरफ़

आलम में हरे होंगे अश्जार जो मैं रोया

आग़ा हज्जू शरफ़

किस प्यास से ख़ाली हुआ मश्कीज़ा हमारा

अफ़ज़ल गौहर राव

चुप-चाप निकल आए थे सहरा की तरफ़ हम

अफ़ज़ल गौहर राव

फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया

आदिल मंसूरी

गोश्त की सड़कों पर

आदिल मंसूरी

चारों तरफ़ से मौत ने घेरा है ज़ीस्त को

आदिल मंसूरी

आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब के

आदिल मंसूरी

हज़ार बार इरादा किए बग़ैर भी हम

अदीब सहारनपुरी

नहीं किसी की तवज्जोह ख़ुद-आगही की तरफ़

अदीब सहारनपुरी

पलंग कूँ छोड़ ख़ाली गोद सीं जब उठ गया मीता

आबरू शाह मुबारक

फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

आया है सुब्ह नींद सूँ उठ रसमसा हुआ

आबरू शाह मुबारक

मिट्टी थी किस जगह की

अबरार अहमद

क़िस्से से तिरे मेरी कहानी से ज़ियादा

अबरार अहमद

जो तूँ मुर्ग़ा नहीं है ऐ ज़ाहिद

अब्दुल वहाब यकरू

शेर कहने की तबीअत न रही

अब्दुल सलाम

अगर बैठा ही नासेह मुँह को सी बैठ

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

जो उन्हें वफ़ा की सूझी तो न ज़ीस्त ने वफ़ा की

अब्दुल मजीद सालिक

मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से

अब्दुल मजीद सालिक

हम ने हसरतों के दाग़ आँसुओं से धो लिए

अब्दुल हमीद अदम

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