फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया
उस गुल-बदन पे नक़्श उठ आए गुलाब के
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चाँद के पेट में हमल मछली
फैले हुए हैं शहर में साए निढाल से
चल निकलो
साए की पिसली से निकला है जिस्म तिरा
वक़्त की रेत पे
वालिद के इंतिक़ाल पर
वक़्त की पीठ पर
सितारा सो गया है
उँगली से उस के जिस्म पे लिक्खा उसी का नाम
मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँ
मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
हज का सफ़र है इस में कोई साथ भी तो हो