उँगली से उस के जिस्म पे लिक्खा उसी का नाम
फिर बत्ती बंद कर के उसे ढूँडता रहा
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सितारा सो गया है
हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद
हाथ में आफ़्ताब पिघला कर
सातवीं पिसली में पीली चाँदनी
दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का
न कोई रोक सका ख़्वाब के सफ़ीरों को
खिड़की अंधी हो चुकी है
ज़मीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा
मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँ
ये फैलती शिकस्तगी एहसास की तरफ़
सियाह चाँद के टुकड़ों को मैं चबा जाऊँ
सोए हुए पलंग के साए जगा गया