मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया
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सियाह चाँद के टुकड़ों को मैं चबा जाऊँ
उफ़ुक़ की हथेली से सूरज न उभरे
लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो
इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला
पहलू के आर-पार गुज़रता हुआ सा हो
दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं
तंहाई
एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया
खिड़की ने आँखें खोली
हज का सफ़र है इस में कोई साथ भी तो हो
दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का
सोए हुए पलंग के साए जगा गया