पुल Poetry (page 15)

डाइरी

गुलज़ार

सहमा सहमा डरा सा रहता है

गुलज़ार

पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं

गुलज़ार

मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता

गुलज़ार

कोई अटका हुआ है पल शायद

गुलज़ार

मैं नहीं हूँ मगर

गुलनाज़ कौसर

हयात-ए-रवाँ

गुलनाज़ कौसर

ये तिलिस्म-ए-मौसम-ए-गुल नहीं कि ये मोजज़ा है बहार का

गुलनार आफ़रीन

शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई

गुलनार आफ़रीन

साँसों के आने जाने से लगता है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मिली राह वो कि फ़रार का न पता चला

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

आगे आगे शर फैलाता जाता हूँ

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

दुआ और बद-दुआ के दरमियाँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सब रंग ना-तमाम हों हल्का लिबास हो

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

रात का हर इक मंज़र रंजिशों से बोझल था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

लब पे सुर्ख़ी की जगह जो मुस्कुराहट मल रहे हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

हर एक पल की उदासी को जानता है तो आ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अकेला दिन है कोई और न तन्हा रात होती है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कभी मोहब्बत से बाज़ रहने का ध्यान आए तो सोचता हूँ

ग़ुलाम हुसैन साजिद

समझते हैं जो अपने बाप की जागीर मिट्टी को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कोई जब छीन लेता है मता-ए-सब्र मिट्टी से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कहीं मोहब्बत के आसमाँ पर विसाल का चाँद ढल रहा है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कभी सूरत जो मुझे आ के दिखा जाते हो

ग़ुलाम भीक नैरंग

तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे

ग़ज़नफ़र

रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा

ग़ज़नफ़र

मुख़्तसर सी बात को भी मसअला कहते रहे

ग़ौसिया ख़ान सबीन

नदी

गीताञ्जलि राय

दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे

गौहर होशियारपुरी

दिल सिलसिला-ए-शौक़ की तश्हीर भी चाहे

गौहर होशियारपुरी

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